वर्त्तमान समय में जिंदिगी के हालात



दिनांक 31/08/19



इस महीने की आखरी तारिक के साथ एक और महीना मेरी जिंदिगी का खतम हो गया।  जिंदिगी बड़ी ही धीमी रफ़्तार से आगे भाड़ रही है।  ऐसा लग रहा है, मानो समय जैसे रुक गया हो। कोई भी काम शुरू करने की सोचता हूँ तो उससे पहले ही जिंदिगी में नयी समस्या आ जाती है। 

दरसल इस समस्या का जिम्मेदार कोई और नहीं मैं खुद हूँ।  एक समय था जब एक अच्छी नौकरी पाने का मौका आया था।  लेकिन जब सरकारी नौकरी की धुन ऐसी छड़ी थी की उसके आगे कुछ और नज़र ही नहीं आ रहा था। कोई भी कुछ भी कहता काम के सम्बन्ध में तो वो बेवक़ूफ़ लगता था।  आज के समय में ऐसा लगता है की वो सब सही थे और केवल और केवल मैं ही गलत था। रोज़ सुबह उठता  और सोचता हूँ की आज कुछ नया करूंगा लेकिन ना जाने दिन कब बीत जाता है।  और फिर शाम से कब रात हो जाती है पता नहीं चलता।  जब कभी भी नज़र उठा कर देखता हूँ कि मेरे साथ पढ़ने ीले लोग न जाने अपनी जिंदिगी क्या क्या अच्छा काम कर रहे है तो  लगता है मेरा की मेरा जीवन तो एक कोरे कागज की तरह खली रह गया है. 

हालांकि मैंने अभी अपने जैसे लोगों से मुलाकात नहीं हुयी है. लेकिन सुना है की हमारे देश में 60 से 70 प्रतिशत  लोगों मनोचिकिसक की ज़रुरत है।  तो क्या मैं उनमे से ही एक हूँ. 




  

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